रविवार, 7 जून 2015

६८

रगंमञ्चमा वाहा वाहा ताली भो जिन्दगी
आफै बाट आज आफै जाली भो जिन्दगी
माया रुपी संसारको जालो भित्र परे देखि
लक्ष्य बिहीन आज किन खाली भो जिन्दगी

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