शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

११९

अन्जान मै माया बस्नुनी भुल रहेछ
बिहान फक्रि साँझ झर्नेनी फुल रहेछ
कसैको सम्झनामा आशु झारी बस्दा
बल्ल थाह भो यिदुई आखा मुल रहेछ

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