खोज खबर
मंगलवार, 10 दिसंबर 2019
जिवन
शिशिर पछि बसन्तमा फुल्नु हो जिवन
झुल्ने धानको बाला झै झुल्नु हो जिवन
आँखा डील हुँदै झर्ने ति आँसु लाई सोध
सु:ख खोज्दै दु:ख लाइ भुल्नु हो जिवन
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें