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रविवार, 16 नवंबर 2014
मुक्तक .
भए र के भो दुस्मन जमना
मेरो त हजुर पिडाका खजना
लुट्ने ले नि सोध्ला एक छिन
देखेर मेरो आखाँमा सपना ..!
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